भाषा विकास के सिद्धांत

मनुष्य की भाषा कैसे विकसित होती है? उसकी प्रक्रिया क्या है ?शब्दों का अर्थ में कैसे समावेश होता है? इसको जानने के लिए भाषा विकास के सिद्धांतों को समझना आवश्यक है। मनुष्य बोलने की योग्यता किस प्रकार अर्जित करता है ?इस विषय पर विद्वानों ने अपने अध्ययन के आधार पर सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है जिसमें से कुछ निम्नलिखित हैं।
परिपक्वता का सिद्धांत
परिपक्वता से तात्पर्य है कि भाषा अवयवों एवं स्वरों पर नियंत्रण होना बोलने में जीह्वा, गला, तालु होठ दांत स्वरयंत्र आदि जिम्मेदार होते हैं। किसी भी प्रकार की कमजोरी या कमी बाणी को प्रभावित करती हैं अंगों में परिपक्वता होती हैं तो भाषा पर नियंत्रण होता है और अभिव्यक्ति अच्छी होती है। विद्वानों का मत है कि भाषा विकास स्वरयंत्रों की परिपक्वता पर निर्भर करता है। जिनके स्वरयंत्र में परिपक्वता नहीं होती हैं वह शब्दों का उच्चारण नहीं कर पाते हैं ।गूंगे व्यक्तियों में स्वर यंत्र का विकास नहीं होता इसलिए उन्हें बोलने की क्षमता नहीं होती है।
अनुबंधन का सिद्धांत भाषा विकास में अनुबंधन या साहचर्य का बहुत योगदान है। शैशवावस्था में जब बच्चे शब्द सीखते हैं तो सीखना अमूर्त नहीं होता है वरन् किसी मूर्त वस्तु से जोड़ कर उन्हें शब्दों की जानकारी दी जाती है ।उदाहरण के लिए कलम कहने के साथ में कलम दिखाया जाता है पानी या दूध कहने पर पानी या दूध दिखाया जाता है ।चाचा या दादा को संकेत के सहारे प्रत्यक्ष रुप से बताया जाता है ।इससे बच्चे उस विशिष्ट वस्तु या व्यक्ति से साहचर्य स्थापित कर लेते हैं। और अभ्यास हो जाने पर संबंधित वस्तु या व्यक्ति की उपस्थिति संबंधित शब्दों से संबोधित करते हैं।
उद्दीपक और प्रतिक्रिया के बीच संबंध स्थापित होने को ही अनुबंधन कहा जाता है
स्किनर अनुसार अनुबंधन द्वारा भाषा विकास की प्रक्रिया को सरल बनाया जा सकता है।
अनुकरण का सिद्धांत
चैपिनीज, शर्ली, कर्टी तथा वैलेन्टाइन आदि मनोवैज्ञानिकों ने अनुकरण के द्वारा भाषा सीखने पर अध्ययन किया है इनका मत है कि बालक अपने परिवारजनों तथा साथियों के भाषा का अनुकरण करके सीखते हैं जैसी भाषा जिस समाज या परिवार में बोली जाती है बच्चे उसी भाषा को सीखते हैं। यदि भाषा में कोई दोष हो तो अनुकरण से वह दोष भी बच्चे सीख लेते हैं ।अतः इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे दोषपूर्ण भाषा ना सीखने पाये । बच्चे शिष्टाचार के साथ अश्लील एवं अशिष्ट शब्दों का भी अनुसरण कर लेते हैं। इसे सामाजिक अधिगम भी कहा जाता है जिसके द्वारा बालक समाज से ही विशाल शब्दों का भंडार सीख जाता है साथ ही बोलने के तौर-तरीके भी सीख जाता है।
चोमस्की का भाषा अर्जित करने का सिद्धांत
चोमस्की के अनुसार बच्चे "शब्दों की निश्चित संख्या से कुछ निश्चित नियमों का अनुकरण करते हुए वाक्यों का निर्माण करना सीख जाते हैं। इन शब्दों से नए-नए वाक्य एवं शब्दों का निर्माण होता है ।इन वाक्यों का निर्माण बच्चे जिन नियमों के अंतर्गत करते हैं उन्हें चोमस्की में जनरेटिव ग्रामर की संज्ञा प्रदान की है"
उपरोक्त मॉडल से स्पष्ट है कि बालक समाज परिवार तथा विद्यालय से शब्दों एवं वाक्यों का संग्रह करते हैं इन शब्दों को संगठित एवं व्यवस्थित करते हैं इनकी समझ पैदा करते हैं और अंत में इन्हीं शब्दों के आधार पर नवीन वाक्यों की रचना करते हैं।

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