भाषा विकास का क्रम

भाषा विकास अंशतः वागीद्रियों मांस पेशियों के परिपत्र क्रमांक तथा अंततः पर्यावरण में मिलने वाली उत्तेजनाओं पर निर्भर करता है ।वागीद्रियों कीपूर्ण परिपक्वता के बाद भाषा विकास मूलतः वातावरण द्वारा प्राप्त उत्तेजनाओं पर निर्भर करता है इसलिए इसका विकास अक्सर एक कर्म के अनुसार होता है इन कर्मों को इस प्रकार दिखाया जा सकता है
ध्वनि की पहचान
भाषा विकास में सबसे पहला क्रम धन की पहचान करना होता है सिर्फ एक खास है आने पर जैसे छह-सात महीने की आयु हो जाने पर ध्वनि की पहचान प्रारंभ कर देते हैं तथा 8-9 महीने की है उसे मधुर धुन पर मुस्कुराते भी हैं।
ध्वनि उत्पन्न करना
भाषा विकास के इस क्रम में बालक ध्वनि को पहचान कर उससे संबंधित कुछ अन्य ध्वनियों को उत्पन्न करना प्रारंभ कर देता है जैसे 8-9 महीने की आयु के बालक के सामने ताली बजाकर आवाज करने से या कुछ बोलने से वह भी कुछ ध्वनि उत्पन्न करने की कोशिश करना प्रारंभ कर देता है।
शब्द एवं वाक्यों का निर्माण
जब बालक 2 वर्ष का हो जाता है तो स्पष्ट रूप से शब्द बोलना प्रारंभ कर देता है तथा ढाई वर्ष से 3 वर्ष की आयु में स्पष्ट रुप से शब्दों को मिलाकर वाक्य बोलना प्रारंभ कर देता है शुरु शुरु में वह शब्दों एवं वाक्यों को गलत ढंग से बोलते हैं परंतु बाद में वह अभ्यास से कुछ सुधार कर लेता है ।
लिखित  भाषा का प्रयोग
जब बालक 4 या 5 वर्ष का हो जाता है वह शब्दों एवं वाक्यों को बोलकर प्रयोग करने के साथ ही साथ उसे लिखने भी लगता है लिखना सीखने के लिए हाथियों आप की क्रियाओं में सामंजस्य घास ढंग से चिंतन एवं अभ्यास आदि करना पड़ता है
भाषा विकास की पूर्ण अवस्था
इस अवस्था में बालकों में भाषा बोलने लिखने तथा पढ़ने की पूर्ण शक्ति विकसित हो जाती है जिस बालक में इन तीनों तरह की शक्तियों का जितना ही अधिक विकास होता है उसमें भाषा विकास उतनी ही तीव्रता से होता है
भाषा दोष
यदि बालक अपने स्वर यंत्रों पर नहीं कर पाता है तो उसमें बाड़ी दोष उत्पन्न हो जाता है ऐसे बालक समाज से कतराने लगते हैं इनमें ताकि ग्रंथ विकसित हो जाती है यह अकेले नहीं रहते हैं किसी के सामने बोलने में सकते हैं आशा दोष का प्रभाव बालक के जीवन में अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ता है उनकी शैक्षिक उपलब्धि भी प्रभावित होती है इन बालकों को पिछड़ा बालक कहा जाता है यह भाषा दोष के प्रकार के हैं।

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